Wednesday, 13 May 2020

ये मोह कैसा


उस राह कि तरफ ये रूख कैसा

जिस राह कि मन्जर में हो, 
फर्क ऐसा, 
जो ना तेरा मुकाम है, ना मेरा 
उस ख्वाहिश से यह मोह कैसा?


तेरे आँसुओं को जहाँ पनाह ना मिले 
आंखों की जुबान बयान ना हो
मुस्कुराहट के जख्मों का मरहम ना हो
उससे यह मोह कैसा?


जो तेरे छुपे अहसासों को आहट ना दे
आवाज की कशीश को जो पहचान ना सके, 
 बदल ना सके हवाओं का रूख  

यह मोह कैसा?

जो तेरी गुहार को अनजाम ना दे
हाथ की लकीरों को थाम ना ले, 
संगदिल, जो तुझे इख्तियार ना सके 
फिर भी ये मोह कैसा?


तू अब भी करता है
खुद को उसमें हासिल, 
जिसकी रूह से हो तेरी रूह का रिश्ता, 
उस सच्ची राह-ए- उल्फ़त से 
ये मोह कैसा। 

तुझ में बस्ती है तेरी माँ





तेरा वुजूद कायम करके
खुद का खुद से राबता बनाकर
रुह का तेरा हिस्सा बनकर
तुझ को मुकम्मल कर
तुझ में बस्ती है वो, 

तेरे ख्यालों की गहराईयों में
तेरे लफ्जों की खलिश में
उन  करकश पन्नों की
तेरी लिखीं किताबों में
तेरे अल्फाज़ बनकर
तुझ में महकती है वो, 

तेरी नियामत हाथों की लकीरों में
तेरे साये तले उन पनाहो में
उन राहगीरों की दुआओं में 
उस जिंदादिली में बस कर
तुझ में झलकती है वो, 

तेरे आसमान छूते अरमानों में 
हासिल होते हर मुकामों में 
उन होसलों की जंग में 
जिंदगी के मुश्किल महकमों में
रात के साये में, तारों की आगोश लिये
तुझे समेटती है वो, 

तेरी आवाज़ कि कशीश में 
उन सच्ची वफाओं में 
तेरी बेइंतहा उल्फ़त में 
अफसानों का आईना बनकर
तुझमें निखरती है वो, 

तेरी कायनात को समेटती
उन आँखों में, 

तेरी जिदंगी को जितती
उन चंद सासों में, 

तेरा आलम थामें खड़ी है वो, 
जहन में शामिल 
तुझ में बस्ती है तेरी माँ।

The Golden Sand


The Golden Sand
Far in the opulent desert land
Sparkle golden sand
Dry and flaccid from distance,
It embraces treasure of heartland.
Yes! Lies the golden sand
Far in the desert land.

Feet traversed the land
Without discerning sand,
With a benevolent gaze at the lines of my palm
Did I embrace the golden sand?

The almighty paves a path
A path to ardour the land,
Yes, the golden sand armoured the soul
With peace profound.
Sparkling in the palms,
It adored like heap of diamond, so intense.
Glittering vibrant colors
Radiating imperial strength.

The soul treasured
The touch mesmerized
Feeling essence of an adorable feather,
The heart fragrant like a flower bed
Gleaming in all weather.

The body danced in the ballerina of dreams,
Lo and behold! Dreams which can shatter,
Close to the reality of life
Perching for the sacred space,
Resilience mind.

Counted lines in the palm
Unlike countless granules,
When the palm unfurled
Every granule lifted, fisted
Slipped shaping fond reminiscence.

The breezy winds with the dint of stormy journey
Enveloped the sand
Like cloud obscuring sun.
This was destined.

It was golden sand
Far in the desert land.
An alcove for ardent endearment…

Shaheen Hasan

Jaisalmer, December 2019